Skip to main content

Featured

Bitcoin 1,10,91,250 रुपये पार, लेकिन जर्मन सरकार ने गंवा दिया $3.57 बिलियन डॉलर का मुनाफा!

  जर्मन सरकार ने 50 हजार बिटकॉइन को आज बेचा होता तो उनकी वैल्यू 6.27 (1,25,000 डॉलर*50,000 बिटकॉइन) बिलियन डॉलर से ज्यादा होती. यानि जर्मन सरकार ने करीब 3.57 बिलियन डॉलर कमाने का मौका गवां दिया. Bitcoin Breaks New Record Price:  दुनिया की सबसे बड़ी क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन (Bitcoin) ने एक बार फिर सभी को चौंकाते हुए अपनी कीमत में जोरदार उछाल दर्ज किया है. 5 अक्टूबर 2025 को बिटकॉइन की कीमत $1,25,000 (लगभग ₹1.11 करोड़) के ऐतिहासिक स्तर को पार कर गई, जिससे इसने अपना ऑल टाइम हाई रिकॉर्ड बना दिया है. जर्मन सरकार को हुआ 3.57 बिलियन डॉलर का नुकसान दरअसल जर्मन सरकार ने लगभग 50,000 बिटकॉइन की बिक्री साल 2024 में की थी, जिसे उन्होंने पाइरेसी वेबसाइट 'Movie2K' से जब्त किया था. बिक्री से जर्मन सरकार को लगभग 2.88 बिलियन डॉलर मिले थे, जिसकी औसत कीमत लगभग 57,600 डॉलर प्रति बिटकॉइन थी. ऐसे में अगर सरकार ने इन क्रिप्टोकरेंसी को आज बेचा होता तो उनकी वैल्यू 6.27 (1,25,000 डॉलर*50,000 बिटकॉइन) बिलियन डॉलर से ज्यादा होती. यानि जर्मन सरकार ने करीब 3.57 बिलियन डॉलर कमाने का मौका गवां दिया. क्या है बिटक...

एआई कंपनियाँ लाखों भारतीयों को मुफ़्त में क्यों देना चाहती हैं प्रीमियम टूल्स

 इस सप्ताह लाखों भारतीयों को चैटजीपीटी का नया और किफ़ायती 'गो' एआई चैटबॉट के एक साल का मुफ़्त सब्सक्रिप्शन मिलने जा रहा है.

कंपनी की तरफ़ से यह एलान गूगल और परप्लेक्सिटी एआई की तरफ़ से दिए गए बयानों के बाद आया है.


दोनों ने भारतीय मोबाइल कंपनियों के साथ साझेदारी की है ताकि यूज़र्स को एक साल या उससे ज़्यादा वक़्त के लिए अपने एआई टूल्स का मुफ़्त इस्तेमाल करने दिया जा सके.

परप्लेक्सिटी ने देश की दूसरी सबसे बड़ी मोबाइल सेवा कंपनी एयरटेल के साथ हाथ मिलाया है, वहीं गूगल ने भारत की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी रिलायंस जियो के साथ साझेदारी की है ताकि मासिक डेटा पैक्स के साथ मुफ़्त या रियायती दरों पर एआई टूल्स दिए जा सकें.

विश्लेषक कहते हैं कि ऐसे ऑफ़र को कंपनी की उदारता या मुफ़्त दान समझने की भूल नहीं करनी चाहिए, ये लंबी अवधि के लिए भारत के डिजिटल भविष्य पर उनका सोचा-समझा दांव है.

काउंटरपॉइंट रिसर्च में विश्लेषक तरुण पाठक ने बीबीसी न्यूज़ से कहा, "योजना यह है कि भारतीयों को जेनरेटिव एआई की आदत डाल दी जाए, फिर बाद में इसके लिए भुगतान करने को कहा जाए."

वो कहते हैं, "भारत के पास बड़ी संख्या में उपभोक्ता हैं और अधिक युवा कंज़्यूमर्स हैं. चीन जैसे बड़े बाज़ारों में भी उतने ही यूज़र्स हैं, लेकिन वहाँ रेगुलेटर का ढांचा सख़्त है जिससे विदेशी कंपनियों की पहुँच सीमित हो जाती है."

वहीं इसके विपरीत, भारत एक खुला और कॉम्पिटिटिव मार्केट देता है. ऐसे में वैश्विक टेक कंपनियाँ यहाँ लाखों नए यूज़र्स को जोड़ने का मौक़ा भुनाना चाहती हैं ताकि अपने एआई मॉडल्स को बेहतर बना सकें.

इस संबंध में ओपनएआई, परप्लेक्सिटी और गूगल ने बीबीसी के सवालों का जवाब नहीं दिया है.

भारत में 90 करोड़ से ज़्यादा इंटरनेट यूज़र हैं और माना जाता है कि यहां दुनिया में सबसे सस्ता डेटा है.

देश की ऑनलाइन आबादी ज़्यादातर 24 साल से कम उम्र की है. ये वो पीढ़ी है जो पूरी तरह स्मार्टफ़ोन पर जीती है, काम करती है और इसी के ज़रिए लोगों से ऑनलाइन मेल-जोल रखती है.

टेक कंपनियों के लिए उपभोक्ताओं को दिए जा रहे डेटा पैक्स के साथ एआई टूल्स को जोड़ना एक बड़ा अवसर है. इसकी एक वजह ये है कि भारत में डेटा की खपत दुनिया के अधिकांश हिस्सों से कहीं ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रही है.

जितने ज़्यादा भारतीय इन प्लेटफ़ॉर्म्स का इस्तेमाल करेंगे, कंपनियों को उतनी जल्दी आंकड़े मिल सकेंगे.

तरुण पाठक कहते हैं, "भारत विविधता से भरा मुल्क है. एआई के इस्तेमाल को लेकर यहाँ से निकलने वाले उदाहरण बाक़ी दुनिया के लिए अहम केस स्टडी साबित होंगे. जितना अधिक अनूठा और प्रत्यक्ष डेटा ये कंपनियां इकट्ठा करेंगी, उनके जेनरेटिव एआई मॉडल उतने ही बेहतर बन सकेंगे."

एआई कंपनियों के लिए बेशक ये फ़ायदेमंद सौदा है, लेकिन उपभोक्ताओं के नज़रिए से देखा जाए तो इसमें डेटा की गोपनीयता को लेकर कई सवाल उठते हैं.

दिल्ली स्थित तकनीकी मामलों के विश्लेषक और लेखक प्रशांतो के. रॉय ने बीबीसी न्यूज़ से कहा, "अधिकांश यूज़र सुविधा या मुफ़्त चीज़ के बदले हमेशा डेटा देने को तैयार रहते हैं और यह प्रवृत्ति जारी रहेगी."

हालांकि वो कहते हैं कि अब वक़्त आ गया है कि सरकार को इसमें दख़ल देना होगा.

वो कहते हैं, "जैसे-जैसे अधिकारी इस व्यापक मसले को समझने की कोशिश करेंगे कि लोग किस तरह इतनी आसानी से अपना डेटा दे देते हैं, रेगुलेशन को और सख़्त करने की ज़रूरत पड़ेगी."

मौजूदा समय में, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को रेगुलेट करने के लिए भारत में कोई समर्पित क़ानून नहीं है. हालांकि, डिजिटल मीडिया और प्राइवेसी को लेकर एक व्यापक डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (डीपीडीपी) 2023 है, लेकिन यह अभी तक लागू नहीं हुआ है.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि हालाँकि यह एक्ट निजी डेटा के ईर्द-गिर्द व्यापक सुरक्षा का वादा करता है, लेकिन इसके लागू होने के नियम अभी भी लंबित हैं और इसके अलावा ये एआई सिस्टम्स और एलगॉरिद्म जवाबदेही को लेकर साफ़तौर पर कुछ नहीं कहता.

अर्न्स्ट एंड यंग के टेक्नोलॉजी कंसल्टिंग लीडर महेश माखिजा ने बीबीसी से कहा, "लेकिन एक बार यह क़ानून लागू हो जाता है तो संभावना है कि यह डिजिटल (प्राइवेसी) के नज़रिए से सबसे उन्नत क़ानूनों में से एक होगा."

Comments